डा0 राममनोहर लोहिया

देश का अगला नेतृत्व ग्रामीण परिवेश का होगा, आज देश को मुलायम सिंह जैसा जुझारू, संकल्प का धनी और कर्मठ नेतृत्व की आवश्यकता है।

चौधरी चरण सिंह

मुलायम सिंह से सभी नेताओं को संघर्ष व संगठन चलाने की सीख लेनी चाहिए। मुझे स्वीकारने में जरा भी हिचक नहीं है कि मुलायम ही मेरा उत्तराधिकारी है जो किसानों, गरीबों, और वंचितों की बात करता है, उनके लिए लड़ता है।

-जनेश्वर मिश्र

लोहिया के बाद मुलायम सिंह ही ऐसे नेता हैं जिन्हें जनता के दुःख दर्द की समझ है, वे गाँव की समस्याओं और गरीबों की पीड़ा के कारणों को जानते है तथा उनके निदान के लिए बेचैन भी रहते हैं।

जननायक कर्पूरी ठाकुर

मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में कभी समाजवाद की आँच और अलख को धीमा पड़ने नही दिया, वे संघर्ष के बल पर नेता बने हैं, उनके महत्व को हम लोग समझते हैं।

सादर समर्पित

उन सभी शहीदों को जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में आत्मोत्सर्ग किया,समाजवाद का सपना देखा,लोकतंत्र के लिए लड़े,राजनीति की संत परंपरा को आगे बढ़ाया, जिनकी विरासत हमारी गौरवमयी थाती है


‘‘इम्तियाज़-ए-ज़ाहिर-ओ-गुमनाम से क्या वास्ता
जो वतन के लिए जिए उन शहीदों को सलाम’’

शिवपाल सिंह यादव

मुलायम के लिए कहे गये विशिष्ट विभूतियों के वाक्य

मुलायम की कथनी और करनी कोई फर्क नहीं। वे जो कहते हैं, करते हैं। जमहूरियत व उर्दू के वे सच्चे हिमायती तथा हिन्दु-मुस्लिम यकजहती के पैरोकार हैं। -कैफी आज़मी (1992 मेजवां)
मुलायम लड़ाका है, वह जनता के सवालों पर किसी से भी लड़ सकता है, हर प्रकार का जोखिम उठा सकता है। वह साधारण नेता नहीं है। -लोकबन्धु राजनारायण (22, नवम्बर, 1989)

लोहिया, मुलायम व समाजवाद

निर्विवाद रूप से समाजवाद एक व्यापक और बहुआयामी अवधारणा है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में समाजवाद एक स्वर्णिम स्वप्न सदृश आदर्श रहा है जिसे डा0 राममनोहर लोहिया ने स्वतंत्रता के पश्चात सिद्धान्त के रूप में सूत्रवत् और निरूपित किया। लोहिया के अनन्य अनुयायी मुलायम सिंह ने समाजवाद के परचम को और अधिक जनोन्मुखी तथा व्यवहारिक बनाते हुए डा0 लोहिया के महाप्रयाण (12 अक्टूबर 1967) के पश्चात पूरी प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ाया और ‘बाजारीकरण’, ‘उदारीकरण’, ‘वैश्विकरण’ के दौर भी समाजवाद की लौ की चमक को धुँधलकों से बचाए रखा। सभी जानते है कि कार्ल माक्र्स के निर्गुण विचारों (साम्यवाद) को युगधर्म के अनुरूप सामयिक बनाकर ब्लादिमिर इलयिच उल्यानोफ (लेनिन) ने सगुण आधार और ठोस कार्ययोजना में परिमार्जित करते हुए दुनिया के पटल विशेषकर रूस में स्थापित किया। ‘‘माक्र्स-लेनिन व साम्यवाद’’ की यही सादृश्यता ‘‘लोहिया-मुलायम व समाजवाद’’ के परिप्रेक्ष्य में भी रेखांकित है। डा0 राममनोहर लोहिया की वैचारिकी को भारत विशेषकर उत्तर प्रदेश में अपने तई ठोस आधारिका प्रदान करने वालों में मुलायम सिंह का नाम अग्रगण्य है। उन्होंने लोहिया की परम्परा को आगे बढ़ाया और उन्हीं की तरह समाजवादी आन्दोलन को बिखराव से रोका। समाजवाद और डा0 लोहिया के संदर्भ एवं प्रकाश में मुलायम सिंह के व्यक्तित्व तथा लोकजीवन मंे किए गए कार्यों व एक राजनेता की भूमिका निभाते हुए उठाए गए प्रश्नों को एक क्रम में रखकर विश्लेषण किया जाए तो मुलायम सिंह जी की समाजवाद और लोहिया के प्रति प्रतिबद्धता स्वयं सिद्ध प्रतीत होती है। ‘‘प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम्’’, नवम्बर 1992 मंे जब मुलायम सिंह ने नई पार्टी का गठन किया तो उसका नाम ‘‘समाज

(दीपक मिश्र)

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लोहिया के सूत्रवाक्य

देश और सरकार की दृष्टि इतनी ज्यादा बिगड़ गई है कि हम आंतरिक प्रयत्न की जगह पर बाहरी प्रयत्नों पर ज्यादा विश्वास करने लगे हैं। क्या साम्राज्यवाद के बिना भी पँूजीवाद सम्भव है? इस प्रश्न का उत्तर संक्षेप में देने के पहले समझ लेना जरूरी है कि इतिहास में देने के बिना पूँजीवाद नही पनपा हैै।

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मुलायम के मंत्र

हिन्दुस्तान की वास्तविक खुशहाली और तरक्की के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि मजदूरों, किसानों, युवाओं पिछड़ों, अल्पसंख्यकों तथा कमजोर तबकों की जरूरतों और सपने पूरे हों। क्षेत्रीय विकास की असमानतायें दूर हों। उपेक्षित इलाकों में भी खुशहाली और सुविधायें मुहैया कराई जाय।ण जिम्मेदारी ली है।

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