समाजवादी संघर्ष के नायक (शिवपाल सिंह यादव )

शिवपाल सिंह यादव

डा. राममनोहर लोहिया का नाम उन महान भारतीयों में अग्रगण्य है जिन्होंने समाज में व्यास विकृतियों के विरुद्ध बहुआयामी संघर्ष किया और राजनीति की संत परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्होंने अमेरिका में आकर रंग-भेद के खिलाफ सत्याग्रह किया, गिरफ्तार हुए और वैश्विक मानवता का संदेश दिया कि इंसान और इंसानी तकाजो में भेद नहीं होना चाहिए। अमेरिकी जनमानस को स्वामी विवेकानन्द के बाद सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले एशियाई डाॅ. लोहिया ही रहे। कई अमेरिकीओं ने लोहिया पर लेख और पुस्तकें लिखीं। अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन की सफलता का श्रेय यदि डाॅ. लोहिया और उनकी समाजवादी टोली को दिया जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। तत्कालीन वायसराय लार्ड लिथलिथगो की गोपनीय रिपोर्ट और मैक्स हरकोर्ट के शोध का निष्कर्ष भी यही है कि सभी बड़े नेताओं महात्मा गाँधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, पंडित नेहरू आदि को ब्रिटानिया हुकूमत ने 8-9 अगस्त, 1942 को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन डाॅ. लोहिया पकड़ मंे नहीं आए। वह मुम्बई, कलकत्ता से लेकर सुदूर नेपाल तक भूमिगत रहते हुए क्रांतिकारी गतिविधियों का मार्ग-दर्शन तथा सामूहिक प्रतिकार को स्वर देते रहे। उन्होंने आजाद दास्ता और आजाद रेडियो की स्थापना की। लोहिया पर ब्रिटानिया सरकार ने इनाम भी घोषित किया। नेपाल मंे जब वह पकड़े गये तो आजाद दस्ते के सेनानियों ने थाने पर सशस्त्र हमला बोलकर उन्हें और लोक नायक जयप्रकाश नारायण को छुड़ाया।

लगभग 22 महीने की फरवरी के बाद वह 22 मई, 1944 को मुम्बई में गिरफ्तार हुए। लंदन के अखबारों में डाॅ. लोहिया की गिरफ्तारी की खबर प्रमुखता से छपी, भारत-सचिव ने इसे बड़ी राहत भरी खबर बताया, किंतु तब तक देश में स्वतंत्रता का वातावरण बन चुका था। जेल में डाॅ. लोहिया को असहनीय यातनाएं दी गई, बर्फ की सिल्ली पर लिटाया गया, दोनों हाथों तथा पैरों में बेडि़यों से बाँधकर कई-कई दिनों तक सोने नही दिया गया। उन्हें न केवल शारीरिक, अपितु मानसिक प्रताड़ना भी दी गई। किंतु लोहिया टस से मस न हुए सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने के बाद भी लोहिया व जयप्रकाश को नहीं छोड़ा गया। इसी दौरान उनके पिता की मृत्यु हुई, ब्रिटानिया हुकूमत ने मानवता को ताख पर रखते हुए उन्हें अपने जन्मदाता के अन्तिम दर्शन को भी इजाजत देने से मना कर दिया। 11 अप्रैल, 1946 को रिहा होने के बाद डाॅ. लोहिया गोवा पहुँचे और वहाॅ अपने मित्र मैनेजिस के साथ गोवा मुक्ति संग्राम का सिंहनाद किया। गोवा पुर्तगाल का उपनिवेश था। लोहिया को आग्वाद किले में कैद रखा गया, किन्तु भारी दबाव व जनाक्रोश के कारण लोहिया को उन्हें छोड़ना पड़ा। सर्वप्रथम लोहिया ने ही गोवावासियों को अपने मूल आधिकारों के लिए लड़ना सिखाया। वहां के मूल अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया। वहां के लोकगीतों में लोहिया का उल्लेख मिलता है। एक बड़े कवि ने लोहिया के सतत् सत्याग्रहों और वैचारिक सुधारों के प्रति प्रतिबद्धता से प्रभावित होकर लिखा था-एक ही तो वीर रहा सीना तान है, लोहिया महान है।

23 मार्च, 1910 को उत्तर प्रदेश के अकबरपुर के एक छोटे से गाँव में हीरालाल व चन्दा देवी के पुत्र के रूप में जन्मे राममनोहर लोहिया बाल्यावस्था से ही स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए। मात्र 14 वर्ष की उम्र में कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में बम्बई अधिवेशन में भाग लिया। वाराणसी से इण्टर पास कर 1927 में वह कोलकाता पहुँचे, यहाँ उन्होंने बंगाल में चल रहे आंदालनों में सक्रिय भूमिका निभाना प्रारम्भ किया। 1928 के कोलकाता अधिवेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा सुभाष चन्द्र बोस की अनुपस्थिति में अखिल बंग विद्यार्थी परिषद के अध्यक्ष बने। लोहिया पहले गैर बंगाली युवा थे, जो बंगाल की राजनीति में इतना विशिष्ट स्थान बना पाए। 1929 में वे बर्लिन से पीएचडी करने गए। वहां लीग आॅफ नेशंस की जेनेवा बैठक में अंग्रेजी सरकार के आधिकारिक प्रतिनिधि के झूठ को उजागर किया और एक अखबार में खुला खत प्रकाशित करवा कर बंटवाया, जिसमें भगत सिंह की फाँसी और अंग्रेजों के अत्याचार का वर्णन था। पूरे यूरोप के सामने लोहिया ने ब्रिटानिया हुकूमत को निरुत्तर कर दिया।

1933 में बर्लिन से लौटने के बाद वह भारत की आजादी और आजादी के बाद समाज की स्थापना के लिए जीवन पर्यन्त लड़े। उन्होंने अनेक पत्रिकाओं का प्रकाशन व संपादन किया। हरिजन, संघर्ष व समता में लिखे गये उनके लेखों के आधार के आधार पर लोहिया को लोकमान्य तिलक की परम्परा का श्रेष्ठ पत्रकार और इकोनामी आफ्टर माक्र्स जैसी पुस्तकों के आधार पर उन्हें लास्की की परंपरा मौलिक अर्थशास्त्री कहना गलत न होगा। आजादी के बाद डाॅ. लोहिया ने जन संघर्षो को आगे बढ़ाया, उन्होंने सामाजिक-आर्थिक विषमताओं तथा धार्मिक विकृतियों के खिलाफ कई अभियानों का सूत्रपात किया। उन्होंने कभी भी सि(ान्तों से समझौता नही किया। 1954 में केरल में अपनी ही सरकार गिरा दी, किन्तु सै(ांतिक शुचिता पर आंच नही आने दिया। उन्होंने विकेन्द्रीकरण की अवधारणा दी, जिसके लिए जापानी नेता याशिका होशिनो ने डाॅ. लोहिया को एशिया का महान चिन्तक और विकासोन्मुख गाँधीवाद का वास्तविक उत्तराधिकारी बताया। वह कुटी में जन्मे और बिना कुटीर के फकीर के रूप में मानवता की सेवा करते हुए महाप्रयाण कर गए। उन्हें भारतीय राजनीति और संसद में गरीबों के दुःख-दर्द-दंश-दलन व दुर्भाग्य के प्रवक्ता के रूप में सदैव याद किया जाएगा। यदि देश डाॅ. लोहिया की अवधारणाओं व नीतियों पर चला होता तो भारत समग्र मानवीय विकास में 136 वें स्थान पर न होता। डाॅ. लोहिया आज अपने जीवनकाल से भी अधिक प्रासंगिक प्रतीत होते हैं।

-शिवपाल सिंह यादव