लोहिया, मुलायम व समाजवाद

निर्विवाद रूप से समाजवाद एक व्यापक और बहुआयामी अवधारणा है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में समाजवाद एक स्वर्णिम स्वप्न सदृश आदर्श रहा है जिसे डा0 राममनोहर लोहिया ने स्वतंत्रता के पश्चात सिद्धान्त के रूप में सूत्रवत् और निरूपित किया। लोहिया के अनन्य अनुयायी मुलायम सिंह ने समाजवाद के परचम को और अधिक जनोन्मुखी तथा व्यवहारिक बनाते हुए डा0 लोहिया के महाप्रयाण (12 अक्टूबर 1967) के पश्चात पूरी प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ाया और ‘बाजारीकरण’, ‘उदारीकरण’, ‘वैश्विकरण’ के दौर भी समाजवाद की लौ की चमक को धुँधलकों से बचाए रखा। सभी जानते है कि कार्ल माक्र्स के निर्गुण विचारों (साम्यवाद) को युगधर्म के अनुरूप सामयिक बनाकर ब्लादिमिर इलयिच उल्यानोफ (लेनिन) ने सगुण आधार और ठोस कार्ययोजना में परिमार्जित करते हुए दुनिया के पटल विशेषकर रूस में स्थापित किया। ‘‘माक्र्स-लेनिन व साम्यवाद’’ की यही सादृश्यता ‘‘लोहिया-मुलायम व समाजवाद’’ के परिप्रेक्ष्य में भी रेखांकित है। डा0 राममनोहर लोहिया की वैचारिकी को भारत विशेषकर उत्तर प्रदेश में अपने तई ठोस आधारिका प्रदान करने वालों में मुलायम सिंह का नाम अग्रगण्य है। उन्होंने लोहिया की परम्परा को आगे बढ़ाया और उन्हीं की तरह समाजवादी आन्दोलन को बिखराव से रोका। समाजवाद और डा0 लोहिया के संदर्भ एवं प्रकाश में मुलायम सिंह के व्यक्तित्व तथा लोकजीवन मंे किए गए कार्यों व एक राजनेता की भूमिका निभाते हुए उठाए गए प्रश्नों को एक क्रम में रखकर विश्लेषण किया जाए तो मुलायम सिंह जी की समाजवाद और लोहिया के प्रति प्रतिबद्धता स्वयं सिद्ध प्रतीत होती है। ‘‘प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम्’’, नवम्बर 1992 मंे जब मुलायम सिंह ने नई पार्टी का गठन किया तो उसका नाम ‘‘समाजवादी पार्टी’’ रखा जिसके संविधान की धारा-2 मंे स्पष्ट शब्दों में लिखा है .......

  • समाजवादी पार्टी की भारत के संविधान में सच्ची निष्ठा और श्रद्धा है। महात्मा गाँधी और डा0 राममनोहर लोहिया के आदर्शों से प्रेरणा लेकर समाजवादी पार्टी लोकतंत्र, धर्म निरपेक्षता और समाजवाद में आस्था रखेगी। समाजवादी पार्टी का विश्वास ऐसी राज व्यवस्था में है, जिसमें आर्थिक एवं राजनीतिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण निश्चित रूप से हो। पार्टी शान्तिमय तथा लोक तांत्रिक तरीकों से विरोध प्रकट करने के अधिकार को मान्यता प्रदान करती है, इसमें सत्याग्रह तथा शान्तिपूर्ण विरोध शामिल है।
  • धर्म पर आधारित राज्य की अवधारणा का समाजवादी पार्टी विरोध करती है और धर्म पर आधारित राज्य में आस्था रखने वाले किसी भी संगठन का कोई भी सदस्य समाजवादी पार्टी का सदस्य नहीं हो सकेगा।
  • महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों एवं पिछड़ांे के लिये विशेष अवसर के सिद्धान्त में पार्टी का विश्वास है। समतापूर्ण समाज की स्थापना के लिए पार्टी इसे जरूरी समझती है।
  • समाजवादी पार्टी विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा तथा उसमें सन्निहित समाजवाद, धर्म निरपेक्षता एवं प्रजातंत्र के सिद्धान्तों के प्रति प्रतिबद्ध रहेगी। समाजवादी पार्टी भारत की सम्प्रभुता, एकता ओैर अखण्डता को अक्षुण्ण बनाए रखेगी।

पार्टी संविधान की धारा-2 में ही लक्ष्य और उद्देश्य निहित है जो डा0 राममनोहर के आदर्शों और सोच को आगे बढ़ाने हेतु अपनी निष्ठा को प्रतिबिम्बित करती है। डा0 लोहिया ने 1955 में समाजवादी युवक सभा के पुरी सम्मेलन में युवाओं को संबोधित करते हुए समानता, अहिंसा, विकेन्द्रीकरण, लोकतंत्र एवं समाजवाद को भारत की राजनीति का अभीष्ट ध्येय बतलाया था। लोहिया के शब्दों में, ‘समानता, अहिंसा, विकेन्द्रीकरण, लोकतंत्र और समाजवाद-ये पाँचों आज भारत की समग्र राजनीति के अन्तिम लक्ष्य दिखाई पड़ते हैं। इन सभी के निरूपण में निर्गुण और सगुण का सक्रिय सहयोग प्रयुक्त होना चाहिए। सगुण यथासंभव निर्गुण के समीप होना चाहिए किन्तु प्रभावपूर्ण और संगत रूप में। डा0 लोहिया द्वारा प्रतिपादित पाँचों लक्ष्य समाजवादी पार्टी के संविधान की धारा-2 में यथावत् अंगीकृत कर लिए गए हैं। इन्हीं उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए लोहिया ने आजादी के बाद 1934 में गठित ‘‘कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’’ को विपक्ष की राह पर चलवाया ताकि लोकतंत्र मजबूत रहे और समाजवाद तत्कालीन केन्द्रीय सरकार द्वारा फैलाई गई मरीचिका में खो न जाए। किसी प्रकार का भ्रम न रहे इसलिए 1948 में नासिक-सम्मेलन में सोशलिस्ट

-दीपक मिश्र