मेरे आदर्श राममनोहर लोहिया ( मुलायम सिंह यादव )

मुलायम सिंह यादव

भारत को आजादी मिले बहुत समय नहीं हुआ था कांग्रेस के नेता जो 1947 के पूर्व राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नेतृत्व में देश की आजादी के संघर्ष में जुटे थे और उस क्षण का बेताबी से इन्तजार कर रहे थे जब सत्ता की बागडोर विदेशी शासकों से भारतवासियों के हाथ में आने वाली थी। सत्ता आई और कांग्रेस के उन नेताओं को सत्तासीन होने का अवसर प्राप्त हुआ। ये लोग शासक बने और सत्ता का सुख भोगने लगे उनका व्यवहार और आचरण एकदम बदल गया।

भारत को राजनैतिक आजादी तो मिल गई थी और लोग आजादी की कल्पना की अनुभूति करने लगे थे, उन्हेें आशा होने लगी थी कि अब वे एक आजाद देश के नागरिक की हैसियत से जीवन जी सकेंगे लेकिन धीरे-धीरे यह अनुभव एक भ्रम साबित होने लगा और यह आशा मात्र आशा ही रह गई। सदियों से शोषित एवं पीडि़त भारत के जन मानस की समस्याओं के समाधान की सही दिशा अपने देश के शासकों ने नहीं अपनाई, वे तो विदेशी शासकों के नक्शे कदम पर ही चलकर सत्ता का उपभोग करने लगे, उस देश में ऐसे नेता भी थे जो जनता की पीड़ा का अनुभव कर रहे थे जिन्हें इस बात का भी एहसास था कि एक आजाद देश में जनता की अपेक्षायें क्या होती हैं। आर्थिक शोषण से मुक्त समता के आधार पर सम्मान पूर्ण जीवन जीने का अधिकार किसी भी लोकतंत्र की पहली शर्त होती है। इन्हीं बातों को लेकर समाजवादी कांग्रेसी, जिन्होंने अपने को सत्ता से दूर रखा, आजादी के बाद सत्तासीन कांग्रेस से पूर्ण तरीके से बन्धन तोड़कर समाजवादी आन्दोलन में जुट गये। डा0 राममनोहर लोहिया इन्हीं में से एक प्रमुख समाजवादी नेता थे, वे राजनैतिक आजादी के साथ-साथ देश के आम लोगों के आम लोगों के लिए वास्तविक आजादी के लिए संघर्ष में जुट गये एवं शोषण-मुक्त, समता पर आधारित समाज की स्थापना की समाजवादी कल्पना को साकार करने में जुट गये। किसानों, पिछड़ों, दलितों, महिलाओं तथा अन्य निर्बल वर्गों को आजादी का सुफल दिलाना उनके समाजवादी आन्दोलन का सबसे बड़ा उद्देश्य था।

डा0 लोहिया उन दिनों किसानों की समस्याओं के हल के लिए संघर्षरत थे। बात 1948 की है जब मैनपुरी, इटावा एवं आसपास के क्षेत्रों में नहर रेट, के विरोध में आन्दोलन जोरों से चल रहा था। डा0 लोहिया इस आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे थे। आबपाशी की दरों में वृद्धि के विरोध मे चलाये गये इस आन्दोलन ने किसानों में एक नई जागरुकता पैदा कर दी थी, सभी लोग जोश-खरोश के साथ इस आन्दोलन मंे हिस्सा ले रहे थे। डा0 लोहिया के प्रति एक अजीब आकर्षक तमाम लोगों में था, चाहे वे किसान हांे अथवा दूसरे लोग। मंै भी डा0 लोहिया और किसानों के लिए किये जा रहे संघर्ष से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। तब मेरी उम्र लगभग 14 वर्ष की रही होगी। मैं लोहिया जी को देखने के लिए आतुर था। मैं भी आन्दोलनकारियों में सम्मिलित हुआ। लोग गिरफ्तार किये जाने लगे, मै भी गिरफ्तारी के लिए आगे बढ़ा, उस समय कुछ बुजुर्ग लोगों ने मेरी उम्र कम देखकर मुझे समझाने का प्रयास किया और घर वापस जाने की हिदायत दी, पर मंै नहीं माना। पुलिस भी मुझे गिरफ्तार नहीं कर रही थी किन्तु मैं जेल जाने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ था। अन्त में हारकर पुलिस ने मुझे गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया। इसी बीच लोहिया जी के दर्शन भी हुए, उनके व्यक्तित्व एवं सरल व्यवहार से मै बहुत प्रभावित हुआ तब से मैंने लोहिया जी को अपना आदर्श मान लिया। आज भी मंै उनके सपनों को साकार करने के लिए कटिबद्ध हूँ। डा0 लोहिया गाँधी जी के बाद इस देश के सबसे महान त्यागी राजनेता तथा चिन्तक थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाजवादी सिद्धांतों व आदर्शों को साकार करने में लगा दिया।

डा0 लोहिया के समाजवादी सिद्धान्तों के प्रति मैं सदैव समर्पित हूँं और आदर्शाे पर चलकर उनके सपनों के समाज के निर्माण के लिए ही देश के समाजवादी साथियों ने मिलकर समाजवादी पार्टी की स्थापना की है। डा0 लोहिया भारत की महान उदारवादी संस्कृति और उच्च मूल्यों पर आधारित ऐसे समाजवाद की कल्पना करते थे जो भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप हो। जाति तोड़ो, अंग्रेजी हटाओ, हिमालय बचाओ, भूमि सेना बनाओ आदि उनके प्रमुख नारे थे। उन्होंने पिछड़ों को 60 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही थी। मुझे प्रसन्नता है कि सत्ता में आने पर मैंने लोहिया जी के इन कार्यक्रमों को धरती पर उतारने के लिये यथाशक्ति प्रयास किया। उत्तर प्रदेश में पहली बार भूमि सेना का गठन किया गया, पिछड़े वर्ग और महिलाओं के लिए आरक्षण लागू करने के लिए निर्णय लिया गया।

हमने सार्वजनिक जीवन तथा सरकारी काम-काज में अंगे्रजी हटाकर भारतीय भाषाओं के प्रयोग के लिए अभियान चलाया। इसी के अन्तर्गत उत्तर प्रदेश में हमारी सरकार ने आठ भारतीय भाषाओं के अध्ययन केन्द्र स्थापित किये, और भी अनेक कार्य विशेषकर खेतीहर किसानों के उत्थान के लिए, जैसा कि डा0 लोहिया चाहते थे, गाँव के युवकों को रोजगार एवं शिक्षा सुलभ कराने के लिए सरकार के स्तर पर एक वातावरण बनाया। डा0 साहब के विचारों के अनुरूप हमने व्यवस्था परिवर्तन पर विशेष ध्यान दिया। यही तो डा0 लोहिया साहब चाहते थे। एक बात मुझे याद आती है कि डा0 लोहिया समस्त महिला वर्ग को पिछड़ा मानते थे चाहे वह किसी भी जाति, सम्प्रदाय तथा आर्थिक स्तर से जुड़ी हो। महिलाओं के उत्थान के लिए वे बहुत अधिक सचेत रहते थे, इसलिए हमारी सरकार ने महिला शिक्षा पर विशेष जोर दिया। डा0 लोहिया एक मौलिक चिन्तक थे। उन्होंने ऐसे समाजवाद की कामना की जो भारत की मिट्टी से जुड़ा हो भारत की सांस्कृतिक धरोहर का पोषक हो। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता एवं भाई-चारे के जबरदस्त समर्थक थे।

आज डा0 लोहिया की कही हुई अनेक बातें सही सिद्ध हो रही हैं। उन्होंने कहा था कि एक दिन साम्यवाद भी साम्राज्यवाद की तरह इस दुनिया से समाप्त हो जायेगा यही तो हुआ है रूस तभा यूरोप के देशांे में। भारत में गैर-कांग्रेसवाद का नारा लेकर उन्होंने लोकतंत्र की आदर्श व्यवस्था को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। कांग्रेस का एकाधिकार समाप्त हुआ, जनता को यह अहसास हुआ कि वह किसी भी अनचाही पार्टी की सरकार को बदलने में सक्षम है। यही तो असली लोकतंत्र की पहचान है। डा0 लोहिया एक सरल स्वभाव के सच्चे एवं स्पष्ट वक्ता थे। इसीलिए तो दुनिया के महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने एक बार लोहिया जी से बात-चीत के दौरान अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मुझे अपने जीवन में तुमसे बढि़या इंसान नही मिला है। आज हम लोहिया जी को याद करते है जब कि देश एक कठिन दौर से गुजर रहा है। भारत के इस महान समाजवादी चिन्तक के आदर्शों पर चलकर ही देश की एकता व अखण्डता के सूत्रों को मजबूत किया जा सकता है और साम्प्रदायिक सद्भाव व भाई-चारे के उस वातावरण को सुदृढ़ किया जा सकता है, जो एक समाजवादी व्यवस्था की पहली शर्त है।

(यह लेख 2 अक्टूबर 1992 को प्रकाशित तथा श्री हरीशचन्द्र द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘‘डा. लोहिया की कहानी उनके साथियों की जुबानी’’ से संकलित है।)

-मुलायम सिंह यादव