मुलायम के मंत्र

हिन्दुस्तान की वास्तविक खुशहाली और तरक्की के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि मजदूरों, किसानों, युवाओं पिछड़ों, अल्पसंख्यकों तथा कमजोर तबकों की जरूरतों और सपने पूरे हों। क्षेत्रीय विकास की असमानतायें दूर हों। उपेक्षित इलाकों में भी खुशहाली और सुविधायें मुहैया कराई जाय।
आज राजनैतिक लोगों पर से जनता का विश्वास उठ रहा है। यह इसलिए भी हो रहा कि हम एक दूसरे पर तो लांछन लगाते हैं। इससे बेईमानी, भ्रष्टाचार और गलत काम करने वाले बहुत से लोग बच जाते हैं। बेईमानी की राजनीति करने वाले मुठ्ठी भर लोग हंै, मगर पूरी जाति को बदनाम कर रहे हंै।
हर धर्म में यह कहा गया है कि मानव सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है। सभी धर्मों और महापुरुषों ने नन्हें बच्चों को मानवता का भविष्य बताया है। देश का भविष्य बताया है। अगर किसी को भी अपने मजहब और मुल्क से प्यार होगा, तो वह बच्चों की हिफाजत में कमी नहीं करेगा।
हमारी नजर में हिन्दुस्तान की जितनी भाषायें हंै, सब बहनें है। राष्ट्रभाषा हिन्दी बड़ी बहन का सम्मान करें। हिन्दी का विकास तभी हो सम्भव है जब सरकारी कामकाज से अंग्रेजी हट जाए।
जनता के भरोसे में ही लोकतंत्र की ताकत है। जनता ही लोकतंत्र की आत्मा है। नेताओं का काम जनहित के लिए सोचना और सही फैसला होना है। समाजवादियों, जनहित के लिए सब कुछ सहने की आदत डालो। जो लोग जनहित के लिए तकलीफ सहने की आदत नहीं डाल सकते, वे समाज और देश की सेवा कभी नहीं कर सकते। समाजवादी लोग कभी गलत बात का समर्थन नहीं करते। आज पूरी अर्थव्यवस्था अमरीका के शिकंजें में कस गयी है। अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक हमारी पूरी अर्थ-व्यवस्था पर काबू किये हुए है। याद रखना गुलामी इसी तरह से आई थी। पहले एक ईस्ट इण्डिया कम्पनी थी, अब तो हजारों कम्पनियाँ हंै। यही आर्थिक गुलामी कहीं हिन्दुस्तान की राजनैतिक गुलामी की वजह न बन जाय।
किसानों ग्रामीणों के लिए वैज्ञानिकों और इन्जीनियरों को सोचना चाहिए। अलग से सोचना चाहिए, उनकी समस्याएं कठिनाईयाँ तथा बीमारियां शहरी लोगों जैसी नहीं होती। हम जानते हैं कि किसानों की खुशहाली और सेहत के बिना अगले 20 सालों तक भारत महाशक्ति नही बन सकता।
समाज के निर्माण में नैतिकता का बहुत महत्व है। नियमों, कानूनों और कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। बहुत सी तकलीफों की दवा इन्साफ है। न्याय अगर तत्काल मिलता है तो उसका असर होता है।
हम अंग्रेजी को मिटाने के पक्ष में नहीं हैं। हम चाहते हंै, अंग्रेजी हटे। सरकारी काम-काज से हटे। अदालतों से हटे। जब तक संसद और उच्चतम न्यायालय में अंगे्रजी चलेगी तब तक देश में हिन्दी नहीं आयेगी। इसके लिए बड़ी सोच और बड़े दिल से काम लेना होगा। जिस तरह सिर्फ हिन्दुओं की उन्नति से हिन्दुस्तान तरक्की नहीं करेगा, उसी तरह अकेली हिन्दी का पनपना नामुनकीन है।
याद रखिये, देश मे बड़ा कोई नहीं होता। न घर, न परिवार, न कुर्सी और न आत्मसम्मान। इसलिए जिन्हें भी देश से प्यार है, वे अपने नेताओं पर और अपनी पसन्द की राजनैतिक पार्टियों पर निगाह जरूर रखें। उन्हें भटकने, निरंकुश होने तथा मनमानी करने से रोकंे। राजनीति में भले लोगों की उदासीनता अच्छी नहीं है। राजनीति में अच्छे लोग दिलचस्पी नहीं लेंगे तो भी यह क्षेत्र खाली नहीं रहने वाला, खाली जगह में कोई भी आ जायेगा। माफिया ही आ जायेगा। अच्छे लोगों के राजनीति मंे आये बिना, राजनैतिक पतन को कैसे रोक सकते हंै?
प्रदेश के हर शहर मे कुछ महापुरुष जरूर हुए हैं। उन्हें याद करने में कन्जूसी नहीं होनी चाहिए। याद रखिये, जो कौमें अपने पुरखों के आदर्शाे, इतिहास और कुर्बानी को भुला देती हैं , वे कौमें नेस्तनाबूद हो जाती हंै।
राजनैतिक लोगों के सामने नेता, नीयत और नीति तीन मुुद्दे होते हैं। अगर नेता मंे खराबी है, नीतियों में भी कोई कमी है, लेकिन नियत स्पष्ट है तब भी देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं पायेगा। उदार आर्थिक नीति की बदौलत अगर इस देश की खेती बचा ले गये तो हिन्दुस्तान बच जायेगा। दुनिया मंे जितने सम्पन्न देश हैं, जो आज महाशक्ति भी बन गये हैं, वे केवल गेहूँ के बल पर बने हैं। उन देशो ने हमेशा खेती को प्राथमिकता दी है।
उपाधि से कोई आदमी बड़ा नहीं बनता, योग्य नहीं बनता। कोई भी कला, कौशल या ज्ञान-विज्ञान तब तक सार्थक नहीं है जब तक वह समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी सिद्ध नही हो।
सबसे पहले तो यह मानना होगा कि साम्प्रदायिकता अच्छी चीज नहीं होती, ये बड़ी खतरनाक होती है, बहुसंख्यकांे की साम्प्रदायिकता जादा खतरनाक होती है अल्पसंख्यकों की साम्प्रदायिकता कुछ कम ,खतरनाक होती है।
चाहे किसी भी धर्म को मानने वाला हो, चाहे किसी भी क्षेत्र का रहने वाला हो, किसी भी जाति का हो लेकिन हिन्दुस्तान में सबको बराबर हक है। विश्व के किसी संविधान या कानून में गैर बराबरी समाप्त करने के उतने प्रावधान नहीं मिलते, जितने हमारे संविधान में है। क्या संयुक्त राष्ट्र में पक्षपात नहीं है, देशों के साथ गैर बराबरी का बर्ताव नहीं है। यू.एन.ओ. की नजर में तो दुनिया के दो भाग हैं, एक भाग वह जिसमें एक ताकतवर देश और उसके पिछलग्गू मुल्क हैं तथा वे दूसरे जिनका अलग वजूद है। हम समाजवादियों की यह धारणा है कि समस्त मानवता एक है। बुरे काम के नतीजे अच्छे नहीं होते।
नेक नीयत, मेहनत, संयम और अनुशासन, हम बार-बार कहते हैं कि इनकी हर क्षेत्र में हमेशा जरूरत रहेगी। खास तौर से वर्दी-धारी संगठनों से तो इसकी सबसे ज्यादा उम्मीद की जाती है। आप का बर्ताव सबके साथ अच्छा हो।
देश की सभी लोक कलाओं में किसी न किसी रूप में दर्शन छिपा होता है। लोकगीतों के माध्यम से आम-आदमी अपने अन्तर मन को सुनता है। दूसरों की भावनाओं को समझ लेता है। धर्म समाज और जीवन की बारीकियों को जान लेता है। कई बार लोक कलाओं के माध्यम से इशारे में कुछ ही पंक्तियों में कह देता है, वह तमाम तरह की किताबों के निचोड़ के बराबर होता है। पिछले कुछ अरसे से ऐसा लग रहा है कि हिन्दुस्तानियों की सोच पर पश्चिम का कुछ ज्यादा ही असर होता जा रहा हैै। विदेशी कंपनियों ने मानो हमारी संस्कृति को तहस-नहस करने का इरादा कर लिया है।
हमारी नजर में भगवान महावीर पहले समाजवादी थे और हकीकत में समाजवाद के प्रणेता थे। उन्होंने मानवता की गैर बराबरी से लड़ने का संदेश दिया और कहा कि ‘‘जियो और जीने दो’’। जियो और जीने दो का एक ही मतलब है- समाजवाद। हम किसी को दुःख नहीं देंगे। सबको बराबरी-बराबरी का मौका देंगे।
हमारी अर्थव्यवस्था पर विदेशी ताकतों का कब्जा हो रहा है। देश आर्थिक गुलामी की तरफ जा रहा है। याद रखिएगा, आर्थिक गुलामी के सहारे हमेशा राजनैतिक गुलामी आती। देश बहुत कठिन दौर से गुजर रहा है। विदेशी मीडिया और कम्पनियां अपने हित के लिए हमारी विचार धारा, भारतीय भाषाओं और सामाजिक मूल्यों के विरुद्ध वातावरण बना रही हैं।
अपनी संस्कृति को, संगीत को, कला को, नृत्य को, भाषा को बचाये बिना यह देश नहीं बचेगा। हमारा देश आत्मा विहिन हो जायेगा।
देश को आजाद कराने में जिन लोगों ने कभी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी, उनकी दशा देखकर हमें कभी-कभी बड़ी तकलीफ होती है, ये लोग जीवित इतिहास हंै हमारी दिली इच्छा है कि इस देश में जिस तरह ऋषि-मुनियों की इज्जत की जाती है, उसी तरह समाज को आजादी के ऋषियों और योद्धाओं की इज्जत करनी चाहिए। उनकी यादों को सुरक्षित रखनी चाहिए।
एक तरफ शिक्षा महंगी हो रही है, पहुँच के बाहर हो रही है। उसका व्यापार हो रहा है। जहाँ तक हमारा सवाल है हमारी राय एकदम साफ है, वही होना चाहिए जैसा डा0 लोहिया कहते थे कि कपड़ा-रोटी सस्ती हो, दवा-पढ़ाई मुफ्त हो।
हमारे लिए प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री कोई पद महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है तो हमारी व्यवस्था, हमारी नीतियां या यह भावना कि हिन्दुस्तान में किसी भी इन्सान के धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, औरत या मर्द के नाम पर, गरीबी या अमीरी के नाम पर भेद भाव न हो।
संत कबीर ऐसे महापुरुष थे जिनकी तुलना किसी से की ही नहीं जा सकती। उन्होंने मानवता का संदेश दिया। भेद-भाव, धर्म और जाति को ललकारा। एक मायने में वह बहुत बड़े समाजवादी थे।
शिक्षकों से हमारी अपील है कि छात्रों को केवल किताब तक सीमित मत रखना। अगर आप शिक्षक हंै तो हर विषय के बारे में अपने छात्रों की जिज्ञासा पूरी करना उनका मार्गदर्शन करने तथा उन्हें समझाने के लिए स्वतंत्र हंै।
‘‘गाँव का पैसा गाँव में’’ नारा हम लोग काफी पहले दे चुके हंै। यदि उत्तर प्रदेश का विकास होगा तो तभी हिन्दुस्तान का विकास होगा। जब उत्तर प्रदेश विकसित नहीं होगा, प्रधानमंत्री चाहे जितना भी संकल्प कर लें, भारत महाशक्ति नहीं बन सकेगा।
एकता में बड़ी ताकत है। जिस तरह सरगम के सातों सुरांे को मिलाए बिना कोई गीत या संगीत नहीं बन सकता। शब्दों को जोड़े बिना वाक्यों का जन्म नहीं हो सकता, उसी तरह देशवासियों की एकता के बिना राष्ट्र का अस्तित्व नहीं रह सकता।
यह समाजवादी रास्ता काँटांे भरा है, समाजवादी रास्ता कठिन है। जो लोग जमीन पर रहते हुए, आसमानों पर उड़ते हैं, उन्हें आसमान तो नहीं मिलता, मगर पैरों के नीचे जमीन भी सरक जाती है। समाजवादी लोगो को हम एक ही राय देते है, जमीन की ओर देखो, मगर सर उठाकर जियो। जनता बहादुरों की इज्जत करती है, उन्हंे आदर और श्रद्धा से देखती है।
आदर्श कभी छोटे नहीं होते। हर समाज के आदर्शो में एक बात जरूर होती है कि उनमें इन्सानियत, उदारता सहनशीलता, त्याग और दयालुता होती है। महान आदर्शो और महापुरुषों पर किसी एक समाज जाति या धर्म का हक नहीं होता वे तो सारी मानवता के लिए होते हैं।
़हमने हमेशा कहा है कि हमारे लोग वैसे बने जैसे आजादी की लड़ाई के बाद के नौजवान थे। हमारे लोग उन आदर्शों को अपनाएँ, जो आजादी की लड़ाई के समय गाँधी जी ने सामने रखे थे ईमानदारी, सादगी और देशभक्ति। नौजवानों ये तीनों तत्व धीरे-धीरे आप की पकड़ से बाहर हो रहे हैं। समाजवादी पार्टी चाहती है सरहदें खत्म हो, पासपोर्ट की आवश्यकता न पड़े।
देश के सामने कुछ ऐसी समस्याएं है जिस पर चिन्तन करना बहुत जरूरी है। अब नहीं तो कब बोलोगे।
सिद्धांतांे पर चलकर के साम्प्रदायिक ताकतों को कमजोर करने का काम हिन्दुस्तान में किसी ने किया है तो समाजवादी पार्टी ने किया। एक हमीं वो लोग हंै, जो निष्कलंक लोग हंै जिन्होंने साम्प्रदायिकता को आगे नही बढ़ने दिया।
नेताओं को ही नहीं सर्वाजनिक जीवन के हर व्यक्ति को कथनी-करनी में अन्तर नहीं रखना चाहिए। अगर अन्तर रहेगा तो जन सेवकों की छवि तबाह हो जायेगी। भेद-भाव के हक मंे नहीं रहते क्योंकि भेद-भाव और जाति-पाँति पर भरोसा करने वाला ही सबसे ज्यादा बेईमान होता है।
दुनिया के दर्जनों देश हमारे बाद आजाद हुए पर वे आज हमसे आगे निकल गये हैं। हम लोगों को भी अपने राष्ट्र को शक्तिशाली और गौरवशाली बनाना बनाने वाली व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। हम अपने देश की स्वाभिमानी और समर्थवान बनाने का संकल्प लें और उस दिशा में गम्भीरता से आगे बढ़ें।
समाजवादी पार्टी की ओर सिर्फ उत्तर प्रदेश नहीं बल्कि पूरे देश की जनता बड़ी उम्मीदों भरी नजरों से देख रही है।
समाजवादी पार्टी महिलाओं के न्याय, विशेष अवसर तथा नर-नारी समानता के डा0 लोहिया के सिद्धान्त में विश्वास करती है और मूर्तरूप देने के लिए लिए प्रतिबद्ध है।
सामन्तवादी और पूँजीवादी व्यवस्था कायम करने का षड़यंत्र हो रहा होगा। संवेदन-शील व्यक्ति ही समाज की तस्वीर बदल सकता है, बड़ा काम हमेशा जोखिम उठाकर होता है। महिला और पुरुष को बराबरी का दर्जा दिए बिना भारत महाशक्ति नहीं बन सकता। अमीर और गरीब को अलग-अलग करके विकास दर निर्धारित किया जाए तो सही तथ्य सामने आएगा। अरबपतियों और करोड़पतियों को पैमाना मानकर विकास दर नहीं मापा जाना चाहिए।
जब कोका कोला आया था, पेप्सी आई थी, तब भी बहुत तारीफ की गई थी। यह कहा गया था कि आलू और टमाटर की पैदावार बहुत बढ़ेगी और किसान को बहुत लाभ होगा। यह कहकर कोका कोला और पेप्सी यहाँ लाये गए। उस समय भी हम लोगों ने विरोध किया था और साबित हो गया कि आलू और टमाटर की पैदावार नहीं बढ़ी। जहाँ तक एफ.डी.आई. का सवाल है, यह देश के हित में नहीं है। अमरीका की जनता भी एफ.डी.आई का विरोध कर रही है। इससे बेरोजगारी बढ़गी। हम गाँधी, लोहिया और जयप्रकाश को मानते हैं। हम कहते हैं कि गाँधी, लोहिया व जयप्रकाश जी अगर होते तो आज एफ.डी.आई. लाने की हिम्मत किसी की नहीं होती।
़समाजवादी आन्दोलन को मजबूत करने के लिए जरूरी है कि प्रदेश की मौजूदा सरकार और पिछली सरकार के कामकाज के तरीकों में अन्तर दिखाना चाहिए। सपा कार्यकर्ताओं और सरकार के मंत्रियों की कार्यशैली में ऐसा आदर्श शिष्टाचार दिखाना चाहिए कि जनता एक बड़े सकारात्मक बदलाव को महसूस कर सके।
हमें सभी वर्गो और सम्प्रदायों को साथ लेकर चलना है। दबे हुए गरीब वर्गो को आगे बढ़ाना है। केन्द्र में भी सरकार पर जब समाजवादियों का प्रभाव होगा तो पूरे गरीबों की खुशहाली का काम होगा। समाजवादी नीतियों का विस्तार होगा। देश में एक समतावादी समाज बनेगा।
समाजवादी पार्टी का लक्ष्य है समता और सम्पन्नता लाना। जब तक जनता को विकास और खुशहाली नहीं मिलेगी वह किसी के साथ क्यों आएगी? सपा के लोगों को बिना किसी घमण्ड के विकास और ईमानदार छवि के लिए काम करना है।
बहस के माध्यम से ही लोकतंत्र चलता है और सबसे ज्यादा आलोचना सहन करने की बात हम सुनते हैं और उसे सहन करते हैं। जो बड़े लोग होते हैं, आलोचना अगर सही है तो उसे स्वीकार करते हैं, गलत है तो उसकी चिन्ता नहीं करते। इस आधार पर हमारे देश का लोकतंत्र कामयाब हुआ है। हम चाहते हैं कि सैकड़ांे साल तक इसी तरह लोकतंत्र कामयाब रहे।
गाँधी ने जो हमें रास्ता दिखाया है वही देश के लिए सही रास्ता है। गाँधीवादी रास्ते पर चलकर हमें डा0 लोहिया, आचार्य नरेन्द्रदेव और जयप्रकाश नारायण के समाजवादी सिद्धान्तों को साकार करना है। हमारा लक्ष्य है- समाजवाद, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता। इस लक्ष्य को पाने के लिए एक बड़े सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक परिवर्तन की जरूरत है।
जितना विदेशी कर्ज हिन्दुस्तान पर है, उससे ज्यादा काला धन विदेशों में हिन्दुस्तान का जमा है। अगर वो सब रुपया ले लिया जाये तो हमारे देश पर से विदेशी कर्ज खत्म हो जाएगा और देश के विकास के लिए पैसा भी जाएगा।
जब तक लोकतंत्र है, तब तक राजनैतिक दल रहंेेगे और राजनैतिक दलों से जनता का भरोसा उठ गया, तो स्वरूप क्या होगा देश का? लोकतांत्रिक व्यवस्था को खतरा हो जायेगा और लोकतंत्र की जगह जो व्यवस्था आयेगी, उस व्यवस्था के कितने खतरनाक परिणाम हांेगे, ये गम्भीर मसले है जिन पर समाजवादी पार्टी चिन्तन करती है।
आजादी की लड़ाई के समय सपना देखा गया था कि आजाद भारत में अमीरी-गरीबी की खाई घटेगी, नाइंसाफी मिटेगी। कोई भूखा नही रहेगा। हिन्दुस्तान महान राष्ट्र बनेगा। आजादी के बाद कुछ काम तो हुआ किन्तु जो सपना था, वह पूरा नही हुआ। अब नए परिवर्तन के लिए समाजवादी नौजवानों पर ही भरोसा है, वे ही गाँधी, लोहिया, जेपी और आचार्य नरेन्द्र देव के सपनों को साकार करेंगे।
1975 के आपातकाल के दौरान हमारी पीढी़ ने नेताओं ने लोकतंत्र विरोधी ताकतों का जोरदार विरोध किया था और जेल की लम्बी यातना झेली थी। अब नई पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि देश में लोकतंत्र विरोधी ताकतें फिर से उभरने न पाएं और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत बनी रहे।
जो देश असुरक्षा और अशांति के साये में हो, वह कभी विकास नहीं कर सकता। बेकारी की समस्या के समाधान के बिना राष्ट्र में अशान्ति बनी रहेगी।
आज हिन्दुस्तान में करोड़ों लोग ऐसे हैं जो दो वक्त की रोटी भी पेट भरकर नहीं खा पा रहे हैं। कितने लोग हैं जिन्हें महीनों से अरहर की दाल के साथ रोटी नहीं मिल रही है, यह हालत है आज हिन्दुस्तान की। इस हालत में क्या सिर्फ 20 पूँजीपति परिवारों के बल पर देश की महाशक्ति बन जायेगा।
समाजवादी पार्टी की कथनी और करनी में भेद नहीं है। हम लोग जब-जब सरकार में आये, वही किया जोे वादा किया गया गया था। हमेशा गरीबों, किसानों, मजदूरों के हक में फैसला लिया। हमने बेरोजगारों को रोजगार भी दिया और बेरोजगारी भत्ता भी दिया।
जो अत्याचार को सहन करता है, उस पर अत्याचार और होता है और जो अत्याचार का विरोध करता है, तो अत्याचार बन्द हो जाता है। समाजवादी पार्टी एक आन्दोलन का नाम है। यह कहना सही है कि सपा परिवर्तन की पार्टी है।
जनता के गरीब वर्गो को यह एहसास होना चाहिए कि समाजवादी पार्टी है और उसकी कथनी व करनी में अन्तर नहीं है। समाजवादी आन्दोलन राजनीति का एक कठिन रास्ता है, पर समाजवादियों को संघर्षोे के आगे निराश नहीं होना चाहिए।
विदेशी नीति में देश का हित देखना होगा, अमरीकी दबाव नहीं ।
विदेशी कम्पनियाँ भारतीय मजदूरों का भारी शोषण कर रही हैं और केन्द्र सरकार इन कम्पनियों को छँटनी करने के लिए उनके मनमाफिक श्रम कानूनों में बदलाव कर रही हैं। इन कम्पनियों को करोड़ों, अरबों का फायदा पहुँचाया जा रहा है और प्रदूषण के नाम पर हजारों देशी रोजगारों को बन्द कराया जा रहा है। विदेशी चीजों के लिए भूख बढ़ाई जा रही है। स्वदेशी की भावना समाप्त हो रही है। आत्मनिर्भरता की जगह कर्ज का रास्ता सरकार चुन बैठी है। खरबों रुपये हर साल सूद में दिया जा रहा है।
समाज के आखिरी आदमी को और जो लोग पिछड़ गये हैं, अपमानित हंै, उन्हंे अगर हमने देश की मुख्य धारा से जोड़ दिया गया तो हमारे देश को दुनिया की महाशक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता। इसी तरह जब किसानों को खुशहाल बना दिया जाएगा और किसान खुशहाली का सच्चा एहसास करेगा। हमने प्रदेश के विकास के मुद्दे पर कभी राजनीति नहीं की है। लेकिन लोगों को आगाह करने के लिए इतना संकेत देना जरूरी है कि केन्द्र सरकार उत्तर प्रदेश के मजबूत मुख्यमंत्री से हमेशा डरती है। जवाहरलाल नेहरू जैसे ताकतवर प्रधानमंत्री को भी तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्ता से डर लगता था।
हमारा दृढ़ मत है कि इस देश को साम्राज्यवादी ‘‘इण्डिया’’ के नजरिए से देखने की बजाय ‘‘भारत’’ की दृष्टि से देखा जाए। भारतीय संविधान में संशोधन करके ‘‘इण्डिया दैट इज भारत’’ के स्थान पर ‘‘भारत दैट इज इण्डिया’’ किया जाए।
छात्र संघ, लोकतंत्र की सातवीं इकाई है। अगर छात्र-संघों पर प्रतिबंध लगा दिया गया, तो गुंडों को, माफियाओं को, धन्ना सेठों को राजनीति में आने से कोई नहीं रोक सकता। चर्चा बार-बार चलती है कि राजनीति में माफिया, बदमाश आ रहे हंै, तो हम कई बार आपसे कह चुके हैं, राजनीति का मैदान खाली नहीं रह सकता, अगर आप नहीं आयेंगे, तो कोई और आ जायेगा, तब राजनीति किसके हाथ मे जाएगी। कब तक आप उदासीन रहेंगे।
डा. लोहिया हमारे आदर्श हंै, नौजवानों के लिए आदर्श हैं, संघर्ष में विश्वास रखने वालों के लिए आदर्श हैं।
‘‘राष्ट्रपति का बेटा, प्रधानमंत्री का बेटा, आई.एस., आई.पी.एस. का बेटा और हमारे गरीब-किसान, मजदूर और चैकीदार का बेटा, एक ही पुस्तक से, एक ही क्लास में, एक ही शिक्षक से पढं़े- यह है समान शिक्षा।
‘‘निर्धन हो या धनवान, शिक्षा होवे एक समान’’ वही शिक्षा हम चाहते हैं, जो कृष्ण और सुदामा की थी। यही ऐसे सवाल हैं, क्या आज ऐसे सवाल उठाने की किसी में हिम्मत है।
शहीदों के अरमानों को पूरा करना है तो समाजवादी आन्दोलन को मजबूत करना होगा। दुनिया में जितने दुःख दर्द हैं वह समाजवादी व्यवस्था से ही दूर हो सकते हंै, दूसरा कोई और रास्ता नहीं है। हमने अपनी सांस्कृतिक विरासत को ही खो दिया तो हम इतिहास के साथ धोखा करेेंगे और अपने पुरखों को भी धोखा देंगे। वायदों को पूरा करने का हमारा शानदार इतिहास रहा है। अपने वादे से पीछे हटना या वचन तोड़ना राजनीति का अक्षम्य अपराध है।
हमने अपने संघर्ष और कुर्बानी से अपने पुरखों के इतिहास और उनकी गरिमा की रक्षा की है। देश आज इतिहास के कठिन मोड़ पर खड़ा है। ऐसे में यदि हम चुप बैठे रहे , जातिवाद, भ्रष्टाचार व साम्प्रदायिकता का महाराक्षस हमारी सभ्यता और संस्कृति को निगल जायेगा और अनगिनत बलिदानों से प्राप्त लोकतंत्र समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता की हमारी उपलब्धियाँ नष्ट हो जायंेगी। आपका आचरण, आपका व्यवहार, फैसला, आपकी बोली किसी को खराब न लगे। लोकतंत्र में जनता ही सबसे बड़ी ताकत है।
हमारा समाजवाद केवल समता ही नहीं, सम्पन्नता पर भी आधारित है। देश को आर्थिक गुलामी से बचाइए, सवाल देश का है।
सरदार भगत सिंह पूरी तरह समाजवादी थे। उन्होंने किसानों, मजदूरों और नौजवानों के लिए एक महान देश का सपना देखा और सोचते थे कि अंग्रेजी हुकूमत के लिए उन्होंने अपने प्राण तक न्यौेछावर कर दिये।
हम उन मूल्यों को बचाना चाहते हैं, जो लोकतंत्र और समाजवाद के मूल्य हैं। मँहगाई का असर आज हिन्दुस्तान के सौ करोड़ लोगों पर पड़ रहा है। ज्यादा से ज्यादा 12-13 करोड़ लोग होंगे, जिनपर असर नही होगा।
साथियों, अगर नहीं लड़ोगे तो जालिम और मजबूत हो जायेगा और तुम कमजोर हो जाओगे।